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किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग

किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग

दरअसल, लद्दाख में 30 से भी ज्यादा प्रजाति की खुबानी का उत्पादन किया जाता हैं, परंतु रक्तसे कारपो खुबानी स्वयं के बेहतरीन गुण जैसे मीठा स्वाद, रंग एवं सफेद बीज के कारण काफी प्रसिद्ध है। कारपो खुबानी को 20 वर्ष उपरांत 2022 में जीआई टैग हाँसिल हुआ है। बतादें, कि लद्दाख की ठंडी पहाड़ी, जहां जन-जीवन बेहद चुनौतीपूर्ण माना जाता है। रक्तसे कारपो खुबानी इसी क्षेत्र में उत्पादित होने वाली फसल को भौगोलिक संकेत मतलब कि जीआई टैग प्राप्त हुआ है। यह खुबानी लद्दाख का प्रथम जीआई टैग उत्पाद है, इसके उत्पादन को फिलहाल कारगिल में 'एक जिला-एक उत्पाद' के तहत बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी मध्य बहुत सारे लोगों को यह जिज्ञासा है, कि लद्दाख में उत्पादित होने वाली इस रक्तसे कारपो खुबानी की किन विशेषताओं की वजह से, इसको सरकार द्वारा जीआई टैग प्रदान किया गया है। आपको जानकारी देदें कि रक्तसे कारपो खुबानी फल एवं मेवे की श्रेणी में दर्ज हो गया है, क्योंकि रक्तसे कारपो खुबानी अन्य किस्मों की तरह नहीं होता इसके बीज सफेद रंग के होते हैं।

रक्तसे कारपो खुबानी की क्या विशेषताएं हैं

विशेषज्ञों का कहना है, कि लद्दाख की भूमि पर उत्पादित की जाने वाली खुबानी रक्तसे कारपो की सबसे अलग विशेषता इसके सफेद रंग के बीज हैं, जो कि पूर्ण रूप से प्राकृतिक है। किसी भी क्षेत्र के खुबानी में विशेष बात यह है, कि खुबानी की ये प्रजाति सफेद रंग के बीजयुक्त फलों के मुकाबले अधिक सोर्बिटोल है। जिसे उपभोक्ता ताजा उपभोग करने हेतु सर्वाधिक उपयोग में लेते हैं। लद्दाख में उत्पादित की जाने वाले 9 फलों में रक्तसे कारपो खुबानी का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। क्योंकि लद्दाख की मृदा एवं जलवायु इस फल के उत्पादन हेतु अनुकूल है। यहां के खुबानी फल की मिठास एवं रंग सबसे भिन्न होता है।
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लद्दाख में होता है, सबसे ज्यादा खुबानी उत्पादन

देश में लद्दाख के खुबानी को सर्वाधिक उत्पादक का खिताब हाँसिल हुआ है। लद्दाख में प्रति वर्ष 15,789 टन ​​खुबानी का उत्पादन होता है, जो कि देश में कुल खुबानी उत्पादन का 62 प्रतिशत भाग है। वर्ष 2021 में लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश घोषित होने से पूर्व स्थायी कृषक थोक में खुबानी का विक्रय करते थे। बाजार में इसका समुचित मूल्य प्राप्त नहीं हो पाता था। परंतु अब खुबानी को अन्य देशों में भी भेजा जाता है, इस वजह से यहां के कृषकों को बेहद लाभ प्राप्त हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है, कि लद्दाख की खुबानी को तैयार होने में कुछ वक्त लगता है। यहां जुलाई से सिंतबर के मध्य खुबानी की कटाई कर पैदावार ले सकते हैं।

खुबानी से होने वाले लाभ

खुबानी एक फल के साथ-साथ ड्राई फ्रूट के रूप में भी उपयोग किया जाता है। यदि हम इसके लाभ की बात करते हैं, तो लद्दाख खुबानी में विटामिन-ए,बी,सी एवं विटामिन-ई सहित कॉपर, फॉस्फोरस, पोटेशियम, मैग्नीशियम आदि भी विघमान होते हैं। साथ ही, खुबानी में फाइबर की भी प्रचूर मात्रा उपलब्ध होती है। यदि हम खुबानी का प्रतिदिन उपभोग करते हैं, तो आंखों की समस्या, डायबिटीज एवं कैंसर जैसे खतरनाक व गंभीर रोगों का प्रभाव कम होता है। साथ ही, समयानुसार उपयोग की वजह से कॉलेस्ट्रोल भी काफी हद तक नियंत्रण में रहता है। खुबानी को आहार में शम्मिलित करने से हम त्वचा संबंधित परेशानियों से भी निजात पा सकते हैं। खुबानी का प्रतिदिन उपभोग करने से शरीर में आयरन की मात्रा में कमी आ जाती है, एवं खून को बढ़ाने में सहायक साबित होती है।
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भारतीय मसालों का स्वाद देश ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है। भारत के विभिन्न प्रकार के मसालों को विदेश में भी अत्यंत पसंद किया जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय मसालों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं की एक अनोखी पहचान स्थापित की हुई है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हींग जिसको हम सभी अपने भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं। हींग को हम भारतीय व्यंजनों में स्वाद को बढ़ाने के लिए उपयोग करने वाला सर्वोत्तम मसाला भी मानते हैं। अपने अनोखे स्वाद और गुणवत्ता की वजह से हींग को वर्तमान में केवल भारतीय मसालों में ही सम्मिलित नहीं किया गया है, इसने विदेशी बाजार के अंदर भी अपनी एक हटकर पहचान स्थापित की है। बतादें, कि उत्तर प्रदेश के एक जिला एक उत्पाद में शम्मिलित हाथरस की हींग को भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग प्रदान किया गया है। इसके उपरांत से ही देश-दुनिया के बाजारों में भारतीय हींग की मांग में काफी वृद्धि देखने को मिली है।

रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न होंगे

मीड़िया द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुरूप, विश्व स्तर पर हींग को पहचान हाँसिल होने के उपरांत यह अंदाजा लगाया जा रहा है, कि भारत के बहुत से युवाओं के लिए रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न होंगे। साथ-साथ लोगों की आर्थिक परिस्तिथियों में भी सुधार देखने को मिलेगा। बतादें, कि उत्तर प्रदेश की हाथरस हींग को जीआई टैग प्राप्त होने के उपरांत भारतीय व्यापारियों को विदेशों में अपने व्यवसाय को विस्तृत करने में काफी सुगमता रहेगी। अगर हम नजर ड़ालें तो विदेशों में केवल हींग ही नहीं हाथरस की नमकीन, रंग, गुलाल एवं गारमेंट्स आदि भी काफी प्रसिद्ध हैं। यह भी पढ़ें: जानें मसालों से संबंधित योजनाओं के बारे में जिनसे मिलता है पैसा और प्रशिक्षण

जीआई टैग होता क्या है

जीआई टैग का पूरा नाम जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग होता है, यह किसी स्थान विशेष की पहचान होता है। सामान्यतः जीआई टैग किसी भी स्थान विशेष के उत्पाद को उसकी भौगोलिक पहचान प्रदान करता है। रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट-1999 के अंतर्गत भारतीय संसद में जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स जारी किया गया था। यह किसी प्रदेश को किसी विशेष भौगोलिक परिस्थितियों में मिलने वाली वस्तुओं हेतु विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार प्रदान करता है। ऐसी परिस्थितियों में उस विशेष इलाके के अतिरिक्त उस उत्पाद की पैदावार नहीं की जा सकती है।

जी आई टैग की आवेदन प्रक्रिया

जीआई टैग के लिए कंट्रोलर जनरल ऑफ पेरेंट्स, डिजाइंस एंड ट्रेड मार्क्स के कार्यालय में आवेदन किया जा सकता है। चेन्नई में इसका मुख्य कार्यालय मौजूद है। यह संस्था आवेदन के पश्चात इस बात की जाँच पड़ताल करती है, कि यह बात कितनी ठीक है। इसके उपरांत ही जीआई टैग प्रदान किया जाता है।